
मौर्य के हाव-भाव से झलकता है कि सूबे में सत्ता और संगठन दोनों में ही बदलाव होगा। योगी को हटाने की मुहिम 2021 में कोरोना काल में हुई थी। तब वे बच गए थे।
लोकसभा चुनाव के बाद देश की राजनीति में काफी बदलाव आया है। एक तरफ जहां केंद्र में सहयोगी दलों की भूमिका में इजाफा हुआ है, वहीं विपक्ष भी संसद में मजबूती के साथ अपनी आवाज रखने में सक्षम हुआ है। इसका असर राज्यों पर भी पड़ा है। कई राज्यों में बीजेपी की ताकत घटी है तो कई जगह कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल मजबूत हुए हैं।
उत्तर प्रदेश में भाजपा की गुटबाजी जारी है। एक तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पार्टी के नेताओं को इलाकेवार बुलाकर उनसे मुलाकात का सिलसिला शुरू कर दिया है और मंशा असंतोष कम करने की है। दूसरी तरफ उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य के साथ उनके रिश्तों की तल्खी बरकरार है। प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के बाद से मौर्य ने न तो योगी की बुलाई किसी बैठक में हिस्सा लिया है और न ही किसी कैबिनेट बैठक में। अलबत्ता दिल्ली दरबार से उनके तार बदस्तूर जुड़े हैं।
मौर्य के हाव-भाव से झलकता है कि सूबे में सत्ता और संगठन दोनों में ही बदलाव होगा। योगी को हटाने की मुहिम 2021 में कोरोना काल में हुई थी। तब वे बच गए थे। पांच साल राज करने के बाद एक तो 2022 में विधानसभा में पार्टी की सीटें घटी, ऊपर से लोकसभा चुनाव में सूबे ने आलाकमान के मंसूबों पर पानी फेर दिया। समर्थक भले दलील दें कि योगी को हटाने से सूबे में भाजपा को नुकसान होगा। पर आलाकमान के लिए वे अपरिहार्य नहीं हैं।